Kavyamoti
रविवार, 1 मई 2016
मंगलवार, 19 अप्रैल 2016
बघेली कविता --- नकल
गाँव के स्कूल मा जब शुरू होइ गइ नकल
उत्तर ढूढई मा सब लगावय आपन अकल|
लड़िका कहई पढी लीन्हे दादा
सब लिखि डारब है हमरऊ वादा |
नकल करावय लडिका के आये भाई बाप
नकल करावय पढे लिखे और अँगूठा छाप |
मास्टर कुछु कहै ता कहैं बहिरे देखि लेब
चुटका फ़ार के डलिन अपने अपने जेब |
एक दुई ठे पुलिसऊ रहे बहिरे तैनात
पुलिसऊ चुटका पहुचाबै कहैं आहि हमरऊ नात |
नकल के चक्कर मा कुछ नही पढे लिखे रहे
एखर ओमा ओखर एमा सबहिन लिखे पड़े रहे |
बाप कहैं लाला आज बहुत नकल ता कीन्हे
मिलतै नही रहा तोखा कहे रहेन पढी लीन्हे |
छोड़ देब पढाई जो हम इया साल फैल भयेन
तोरे चक्कर मा तीन चार उत्तर से चूक गयेन |
परीक्षा लड़िका दिहिन और बाप चुटका दिहिन
सब प्रश्न के उत्तर अथवा ओथवा सब किहिन |
----विवेक वर्मा
कविता ------ गर्मी
गर्मी के इस जंग मे हो गये चकनाचूर
आदमी के पहुच से हो रहा पानी दूर |
उमड़ रहा है तेज धूप का शैलाब
सूख रहे नहर नदी और तालाब |
दिनों दिन गर्मी छू रही आसमान
इस गर्मी से कुछ पहुच रहे शमशान|
बूढे बच्चों पर पड़ रही गर्मी की मार
प्रतिदिन सैकड़ो बच्चे हो रहे बीमार |
गर्मी के कारण मुश्किल हुआ है जीना
चारो ओर है तपन निकल रहा पसीना|
सूख रहे पेड़ पौधे और बगीचे बाग
गर्मी के मौसम मे सूरज उगलता आग|
- विवेक वर्मा
सोमवार, 18 अप्रैल 2016
ये दीप
देखो मिट्टी के ये दीप जल रहे l
उजियारे के मीठे फूल खिल रहे ll
उजियारे के मीठे फूल खिल रहे ll
घर आँगन मे टिम टिम जलता l
आँधी तूफ़ानो मे खूब संभलता ll
आँधी तूफ़ानो मे खूब संभलता ll
फिर आँगन मे कतार से सजता l
इनके जलने से प्रकाश फैलता ll
इनके जलने से प्रकाश फैलता ll
सुख प्रेम ज्ञान की अलख जगाता l
करता प्रकाश और मन को भाता ll
करता प्रकाश और मन को भाता ll
दीप पर्व बच्चों के मन को भाता l
बुझ गई दीप फिर क्या रह जाता ll
'
-विवेक वर्मा
बुझ गई दीप फिर क्या रह जाता ll
'
कविता --- माँ
सबसे प्रथम गुरू होती है माता
जग मे सबसे बड़ा माँ से नाता l
जग मे सबसे बड़ा माँ से नाता l
माता होती है भगवान स्वरूप
जैसे शरद ऋतु मे प्यारी धूप l
जैसे शरद ऋतु मे प्यारी धूप l
माँ ने हमे इस दुनिया मे लाई
हाथ पकड़ के दुनिया दिखाई l
हाथ पकड़ के दुनिया दिखाई l
जब कभी चोट मुझे लग जाये
माँ की आँख पहले ही भर आये l
माँ की आँख पहले ही भर आये l
मुँह का एक एक निवाला दे देती
मुझे खिला खुद भूखी रह लेती l
मुझे खिला खुद भूखी रह लेती l
मेरे हर एक शौक करती पूरे
रह गये उसके शौक अधूरे l
रह गये उसके शौक अधूरे l
ज्यादा होता रिश्ता नौ महीने का
आधार होती है माँ जीवन पाने का
आधार होती है माँ जीवन पाने का
कविता --- सूरज
सूरज बच्चों के मन को भाते l
तम - अन्धेरा हरदम मिटाते ll
तम - अन्धेरा हरदम मिटाते ll
सूरज जग उजियारे फैलाते l
पक्षी गीत -गान गुन गुनाते ll
पक्षी गीत -गान गुन गुनाते ll
सूरज सुबह सुबह आ जाते l
अपना रोजना काम निभाते ll
अपना रोजना काम निभाते ll
पाप भ्रम तम हर ओर मिटाते l
तम अंधकार की चादर हटातेll
तम अंधकार की चादर हटातेll
रवि और समीर का मेल बढाते l
विवेक ज्योति की दीप जलाते ll
विवेक ज्योति की दीप जलाते ll
- विवेक वर्मा
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