मंगलवार, 19 अप्रैल 2016

कविता ------ गर्मी

गर्मी के इस जंग मे हो गये चकनाचूर
आदमी के  पहुच से हो  रहा पानी दूर |

उमड़ रहा  है तेज  धूप  का शैलाब  
सूख  रहे  नहर  नदी और  तालाब  |

दिनों  दिन   गर्मी  छू  रही आसमान
इस गर्मी से कुछ पहुच रहे शमशान|

बूढे बच्चों पर पड़ रही गर्मी की मार
प्रतिदिन सैकड़ो बच्चे हो रहे बीमार |

गर्मी के कारण मुश्किल हुआ है जीना
चारो ओर है तपन निकल रहा पसीना|

सूख रहे  पेड़ पौधे  और बगीचे बाग
गर्मी के मौसम मे सूरज उगलता आग|
             
                            - विवेक वर्मा 

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